क्षत्रिय कूल के गौरव ,स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप

जोगराज सिंह भाटी

महाराणा प्रताप एक नाम नहीं बल्कि एक जीता जागता उज्ज्वल इतिहास है , स्वाभिमान ,त्याग ,वीरता , उदारता समर्पण का प्रतीक है ।
महाराणा प्रताप के पास हर चीज सीमित थी , सीमित सेना , सीमित धन , सीमित हथियार और सामने अकबर जैसा शत्रु जिसके पास सभी प्रकार् के संसाधन थे फिर भी समर्पण का भाव मात्र नहीं यही सच्चे क्षत्रिय की निशानी है ।
महाराणा प्रताप और संघर्ष हमेशा साथ साथ चले , पहले आस पड़ोस से संघर्ष फिर अकबर से शत्रुता , जंगलों में अभावग्रस्त जीवन उनको लेकर अकबर ने कहा था कि प्रताप के पास साधन सीमित थे लेकिन फिर भी न डरा , न झुका बल्कि अकबर खुद ही बेचैन रहा ।
जहां भी गए परिवार साथ रहा , परिवार ने भी सब सहा और प्रताप को संबल दिया । जब आप अपने नेक उद्देश्य के प्रति सच्चे होते है तो ईश्वर भी साथ देता है ,उसी रूप में भामाशाह आये और उन्होंने अपना सब कुछ उनको अर्पण कर दिया , प्रताप ने भी उतना ही उपयोग किया जितने के उनकी सैन्य जरूरते पूरी हो जाये । दान के कई उदाहरण है पर प्रताप जैसे योद्धा को दान करके भामाशाह भी दानवीरता के प्रतीक बन गए , उनका नाम भी प्रताप के साथ अमर हुआ।
प्रताप में सब गुण थे ,में उनको महान स्वतंत्रता सेनानी कहूंगा क्योंकि उनको सुख सुविधा पूर्ण परतंत्रता से अभावग्रस्त स्वतंत्रता प्यारी थी और वो उसपे अडिग रहे।
व न्यायप्रिय और नारी सम्मान के भी प्रतीक है अपने बेटे के द्वारा युद्ध मे महिलाओं को बंदी बनाने पे उसे दंडित करके न्याय किया और उन्हें ससम्मान वापस भेज के नारी सम्मान का उदाहरण पेश किया ।
उनका युद्ध कौशल भी उत्कृष्ट था , उन्होंने भीलों की शक्ति को पहचाना और उनकी छापामार युद्ध पद्धति का सही उपयोग किया।
वे धर्म और जाति निरपेक्ष योद्धा थे उन्होंने जो किया वो मानव मात्र के कल्याण के लिए किया , इसको इससे समझा जा सकता है कि हकीम खान सूरी उनके सेनापति थे और मानसिंह से उन्होने युद्ध किया।
उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा ‘चेतक‘ था जिसने अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था।
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुंणो के साथ-साथ अच्छे व्यवस्थापक की विशेषताएँ भी थी। अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर भी दुःखी हुआ था। अकबर की उच्च महत्वाकांक्षा, शासन निपुणता और असीम साधन जैसी भावनाएं भी महाराणा प्रताप की अदम्य वीरता, दृढ़साहस और उज्वल कीर्ति को परास्त न कर सकी।
आज भी महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों के लिये प्रेरणा स्रोत है। राणा प्रताप का स्वाभिमान भारत माता की पूंजी है। वह अजर अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर है। ऐसे पराक्रमी भारत मां के वीर सपूत महाराणा प्रताप को राष्ट्र का शत्-शत् नमन।

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